रतलाम शहर पर मां कालिका की कृपा है और रतलामियों की किस्मत भी तेज है ,वरना अहंकारी और अनुभवहीन अफसरशाही के चलते शहर कभी भी समस्या में उलझ सकता था। ये शहर की किस्मत ही है कि,एक तो अब तक कोई पाजिटिव नहीं मिला है। दूसरे, देर से ही सही सरकारी अफसरों को अब इतनी समझ भी आ गई है कि रतलामी बाशिन्दो के सहयोग के बिना अकेले सरकारी मशीनरी समस्या से निपटने में सक्षम नहीं है।
वरना अभी दो दिन पहले तक तो अफसरों का अहंकार देखने लायक था। बेचारे समाजसेवी कह रहे थे कि हम भूखों के लिए भोजन उपलब्ध कराना चाहते है,तो तो नियम का हवाला देकर  परमिशन नहीं दी अगर हमारी परमिशन के बिना कोई भोजन बांटता मिल गया तो उसे सीधे अन्दर भेज दिया जाएगा।
बडी मैडम लोगों को यह समझा रही थी कि हाइजीन को केवल वो ही समझती है। बाकी लोग भोजन बनाएंगे तो हाइजिनिक नहीं रहेगा। इसलिए जिसे जो कुछ मदद करना है,वो नगद और सामग्री के रुप में सरकारी कारिन्दों को देदे और सरकार सबकुछ कर लेगी। समाजसेवा करने वाले इसमें भी राजी थे। लेकिन सरकारी इंतजाम इतने नाकारा हो रहे थे कि दानदाताओं का सामान तक उठवाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी।
गनीमत रही कि सरकार अब भाजपा की है और  जननायक श्री शिवराज सिंह चौहान ने हर जिले से विडियो कान्फ्रेन्सिंग की ,तो अफसरों के साथ जनप्रतिनिधियों को भी बुलाना पड़ा, मुख्य मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान भीअगर जनप्रतिनिधियों पर भरोसा दिखा रहे हो तो अफसरों को तो दिखाना ही पडता है।
जिला पंचायत के इकलौते नन्हे से कथित हाइजिनिक किचन से शहर के हजारों भूखे लोगों की पेट की आग मिटाने का दावा करने वाले अब दूसरा कम्यूनिटी किचन खोलने को तैयार हो रहे थे। बहरहाल,शहर में भोजन तैयार करने के लिए अब एक असरकारी किचन चालू हो गया है। इसके पहले तक तो उनके ये भी दावे थे कि हर भूखे तक भोजन वे ही पंहुचा देंगे। हांलाकि इसी बडबोलेपन के चलते कई लोगों को पिछली कई रातें खाली पेट गुजारना पडी थी। लेकिन अब वे राजी थे कि समाजसेवा करने के इच्छुक लोगों की मदद भी लेंगे और भोजन वितरण की व्यवस्था उनके द्वारा की जाएगी।
मामला बीमारी से जुडा है इसलिए सेहत वाले महकमे की जिम्मेदारी सबसे बडी है। कोरोना की लडाई में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी उनकी है,जिन पर संदिग्घ मरीजों की जांच करने की जिम्मेदारी है। सरकारी बदइतंजामी का आलम यह था कि जिन्हे जांच का जिम्मा दिया गया था,उन्ही के पास संक्रमण से बचने के पूरे साधन नहीं थे। आखिरकार एक दिन उन्होने भी काम करने से इंकार कर दिया। खबरचियों ने जब इस मामले को उठाया,तब कहीं जाकर बडे अफसरों की आंख खुली और इन टीमों को पुख्त सुरक्षा इंतजाम मुहैया कराए गए।
कुल मिलाकर जनता कफ्र्यू के दिन से शुरु हुए जिले के लाक डाउन में सरकारी इंतजाम पूरी तरह गडबडी भरे ही थे। अलग अलग सरकारी महकमों में आपसी तालमेल कहीं नजर ही नहीं आ रहा था। तालमेल की दिक्कत तो अब भी नजर आ ही रही है। जो सरकारी निजाम जिले में इस वक्त है,उसकी नासमझी और अहंकार शहर को समस्याओं के गर्त में डाल सकता था,लेकिन शहर की किस्मत तेज है कि राजधानी का निजाम बदल गया और व्यवस्थाएं बिगडने से पहले ठीक की जाने लगी।
कोरोना की इमर्जेंसी के चलते सभी को इस बात का पूरा भरोसा था कि जब तक कोरोना संकट चल रहा है सरकारी व्यवस्थाओं में ज्यादा बदलाव नहीं होंगे। लेकिन हफ्ते के आखरी दिन इन्दौर से आई खबरों ने कई सारे अफसरों को हिला दिया है। सरकार ने कोरोना संकट के चलते हुए भी इन्दौर के बडे बडे अफसरों को मुख्यालय में जमा करने के आदेश निकाल डाले। यहां भी हालत ज्यादा अच्छे नहीं है। इसी का डर भी सता रहा है। इसी का असर है कि जो अफसर कल तक रतलाम के कई जनप्रतिनिधियों के मोबाइल भी नहीं उठा रहे थे ,आज उनका खुद इंतजार कर रहे हैं। साभार ई खबर टुडे
 
 
 
